हुआ ध्यान में ईश्वर के जो मगन, उसे कोई क्लेश लगा न रहा
जब ज्ञान की गंगा में नहाया, तो मन में मैल जरा न रहा।
परमात्मा को जब आत्मा में, लिया देख ज्ञान की आँखों से
उजियारा हुआ मन में उसके , कोई उससे भेद छिपा न रहा।
पुरुषार्थ ही इस दुनिया में, सब कामना पूरी करता है
मनचाहा फल उसने पाया, जो आलसी बन के न पडा रहा।
दुःखदाई हैं सब शत्रु हैं, यह विषय है जितने दुनिया के
वही पार हुआ भवसागर से, जो जाल में इनके फँसा न रहा।
यहाँ बड़े-बड़े महाराज हुए, बलवान् हुए विद्वान् हुए
पर मौत के पंजे से "केवल" दुनिया में आके बचा न रहा।
"तेरे दर को छोड़ कर , किस दर जाऊँ मैं ।
सुनता मेरी कौन है , किसे सुनाऊँ मैं ॥
जब से याद भुलाई तेरी , लाखं कष्ट उठाये हैं ,
क्या जानू इस जीवन अन्दर कितने पाप कमाये हैं ।
हूँ शर मिन्दा आप से क्या बतलाऊँ मैं ॥
तेरे दर को ..
मेरे पाप कर्म ही तुझसे , प्रीति न करने देते हैं ,
कभी जो चाहूँ मिलूँ आप से , रोक मुझे यह लेते हैं ।
कैसे स्वामी आपके दर्शन पाऊँ मैं ॥
तेरे दर को .......... ( २ )
है तू नाथ वरों का दाता , तुझसे सब वर पाते हैं ,
ऋषि मुनि और योगी सारे , तेरे ही गुण गाते हैं ।
छींटा दे दो ज्ञान का होश में आऊँ मैं ॥
तेरे दर को .
जो बीती सो बीती लेकिन बाकी उम्र सँभालूँ मैं ,
प्रेम पाश में बँधा आपके गीत प्रेम के गालूँ मैं ।
जीवन प्यारे देश का सफल बनाऊँ मैं ।
तेरे दर को .. ( ४ )"
ईश्वर से संग जोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़,
विषयों से मुँह मोड़ मानव, विषयों से मुँह मोड़।
१ - प्रातः सायं संध्या कर ले, वेद ज्ञान जीवन में भर ले,
शुभ कर्मों को न छोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
२ - जिससे मानव पाप कमाता, जन्म मरण बंधन में आता,
उस बाधक को तोड़ मानव , ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
३ - केवल धन संचय में रहना , विषय भोग सागर में बहना,
यह अन्धो की दौड़, मानव ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
४ - बिन ईश्वर को जाने माने , दूध और पानी को न छाने,
व्यथा यतन को छोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
५ - अविद्या का नाश किया कर , सदा ईश संग वास किया कर
छोड़ जगत की होड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
६ - उद्यम कर ले छोड़ उदासी , जनम जनम की पाप की राषि
पाप कलश को फोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
७ - क्यों फिरता है मारा मारा , ईश्वर का ले पकड़ सहारा,
यह है एक निचोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
८ - अब भी जो तू चेत न पाया, तो फिर तुझको ये जग माया ,
देगी तोड़ मरोड़ , ईश्वर से संग जोड़।
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...
ईश्वर से संग जोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़,
विषयों से मुँह मोड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़...